मेरे राम जी

””सूखे हैं अधर लटकत हैं वदन,

संग श्री, सौमित्र सुधा भटकत है,

अरण्य से अर्णव टहलत हैं,

सब से बोलत चालत हैं वो,

बोली सुनिके लागत ऐसे,

जैसे मधु कै रसधार गिरी,

गिरी रस को लोकत हैं जन,

पीके सब मँझ से पार भये,

तब ब्रम्हर्षि कहत हैं देखो,

जो पयसागर के मालिक हैं,

उनके पथ मे ही कांटे हैं,

जब कंटक से पीर उठा श्री को,

तब पग को उठाकर श्रीधर ने,

अपने पद के उरु पर रखा,

तब निज हाथो से कंट निकाला है,

श्री श्रीधर का अचला पर त्यज, 

साक्षात् अनुरक्ति का सागर हैं,””

By-शिवाय

करुणा निधान जो सब के पालक हैं, जब वो स्वयं काँटों पर चलकर आर्याव्रत की एक कोने से श्रीलंका तक का  सफर तय किया तब वही श्रीराम, पुरुषोत्तम श्रीराम कहलाये!

  • Take a look at this post… ‘Shivsambhu ki anupam drishyo ka anokha sangrah’.
    http://lover521.blogspot.com/2020/05/shivsambhu-ki-anupam-drishyo-ka-anokha.html
  • मेरे राम जी
    ””सूखे हैं अधर लटकत हैं वदन, संग श्री, सौमित्र सुधा भटकत है, अरण्य से अर्णव टहलत हैं, सब से बोलत चालत हैं वो, बोली सुनिके लागत ऐसे, जैसे मधु कै रसधार गिरी, गिरी रस को लोकत हैं जन, पीके सब मँझ से पार भये, तब ब्रम्हर्षि कहत हैं देखो, जो पयसागर के मालिक हैं, उनके पथ मे ही कांटे हैं, जब कंटक से पीर उठा श्री को, तब पग को उठाकर श्रीधर ने, अपने पद के उरु पर रखा, तब निज हाथो से कंट निकाला है, श्री श्रीधर का अचला पर त्यज,  साक्षात् अनुरक्ति का सागर हैं,”” By-शिवाय करुणा निधान … Continue reading मेरे राम जी
  • The Journey Begins
    Thanks for joining me! Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton

अद्भुत है मेऱे राम जी की लीला….

इनको कौन नहीं जानता, ये है करुणा निधान,,
ये नायक श्री राम जी के विश्वसनीय दूत और सेवक हैं !

श्री रामचरित मानस
बाल कान्ड
।।श्री गणेशाय नमः ।।
श्रीजानकीवल्लभो विजयते
श्री रामचरित मानस
प्रथम सोपान
(बालकाण्ड)
श्लोक
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।।1।।
भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्।।2।।
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते।।3।।
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ।।4।।
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्।।5।।
यन्मायावशवर्तिं विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्।।6।।
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-
भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमातनोति।

श्री रामचरित मानस
बाल कान्ड
।।श्री गणेशाय नमः ।।
सो0-जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।1।।
मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।।2।।
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन।।3।।
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन।।4।।
बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर।।5।।
बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिय मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती।।
जन मन मंजु मुकुर मल हरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी।।
श्रीगुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य द्रृष्टि हियँ होती।।
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू।।
उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के।।
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक।।
दो0-जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।।1।।
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एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा।।
मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोऊ।।
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी।